अमन कुुमार त्यागी ठगों की सभा प्रारंभ हो चुकी थी। ठगों के राजा सिंहासन पर बैठे हुए प्रत्येक ठग की बात सुन रहे थे। ठगों के विभिन्न जातियों से होने के बावजूद उनमें एकता थी। इन ठगों में परिवारवाद अथवा जातिवाद को लेकर कोई विवाद नहीं होता था। सभी ठग अपनी-अपनी ठगी के किस्से सुना रहे थे। -‘मित्रों! मैंने अपने भाई को ठगकर रिकार्ड बनाया है। मेरा वह भाई जो एक-एक रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है, कड़ी मेहनत के बाद परिवार के साथ खा-पीकर सुख की नींद लेता है, उसे मैं एक दो बार नहीं बल्कि अनेक बार