आत्महत्या उन दिनों मैं एक शहर के विद्यालय में कार्यरत था, जहां अक्सर उन अभिभावकों के बच्चे पढ़ने आते थे, जो सच पूछिए तो शायद अभिभावक की भूमिका निभाने में असमर्थ थे या लापरवाह थे या जागरूक ना थे और आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थे। शहर में जरा सा जागरूक कोई भी व्यक्ति अपने परिवार की न्यूनतम आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान की भी पूर्ति कर पाता था, तो वह अपने बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला नहीं करवाता था। समाज में एक आम धारणा किसी महामारी की तरह