अमन कुुमार त्यागी उस वृक्ष के सारे पत्ते झड़ चुके थे, जिसकी घनी छाया में अनेक पशु-पक्षी आरामफ़रमा होते थे। पत्ते भी ठीक इस अंदाज़ में झड़ गए, जैसे कबड्डी में एक पाले के सभी खिलाड़ी पस्त हो गए हों। उस वृक्ष की एक-एक टहनी को स्पष्ट देखा, गिना जा सकता था। वृक्ष क्या उजड़ा, सभी पक्षी उसे छोड़कर चले गए। पशु बेचारे न जा सके, वह उस पेड़ की जड़ में खड़े हो ही जाया करते थे। जाते भी कहाँ? किसान के घर से निकलकर वहीं, उसी वृक्ष के आस-पास मंडराते हुए घास चरते थे। घास भी सब