अपने परिवार में कई वर्षों से अनवरत एक क्रम देख रहा हूँ जिसमें माँ बिना कुछ खाए स्नानादि करके पूजा इत्यादि के उपरान्त सबसे पहली कुछ रोटियाँ गाय के लिए बनाती हैं और पिताजी बिना समय व्यर्थ नष्ट करें गाय को वो रोटियाँ खिलाने के लिए रास्ते दर रास्ते नापने में लग जाते हैं कि गाय को कुछ थोड़ा भोजन मिल सके। यदि मेरे परिवार के सभी सदस्यों की आस्तिकता को मापने का काम किया जाए तो मेरा मूल्यांकन कहीं निचले पायदान पर किया जाएगा ऐसा मुझे अटूट विश्वास है। फलतः यदि किसी दिन पिताजी किसी कारणवश गाय को रोटी