पति का आरक्षण

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आज अचानक ही रोहन की नजर अखबार के साहित्य पन्ने पर पड़ी और अपने मित्र लेखक कवि की एक कविता पर कविता की पंक्तियां थी  अपने इरादों को सुरों की झंकार दो  उठो बस तुम गांडीव को टंकार  हो अजय तुम बस उठो पार्थ बनो  दुश्मन सामने है सिंह हुंकार दो  तेरे कांधों पर है अब यह बोझ सारा  शेषनाग सा ले धरती को वार दो  तुझे धरा पुकारती ओ सुत भारती  अपने हाथों से हरा श्रृंगार दो  किसी रोते हुए नन्हे बच्चे को  बस नन्ही सी थपकी से बस तुम पुचकार दो ।   अपने भीतर के दर्द को