अमन कुमार त्यागी भयानक गर्मी थी। रेतीला रास्ता किसी भड़भूजे की भट्टी के समान तप रहा था। रेत पर उगी घास झुलस चुकी थी मगर सुखिया इस रेत पर नंगे पांव सरपट दौड़ी चली जा रही थी। उसके सिर पर अपने ही खेत से खोदी गई घास की गठरी और हाथ में खुरपा मानों सूरज के महाक्रोध से मुकाबिला करने के लिए काफ़ी थे। गर्मी, सर्दी और कांटों की चुभन ने उसके पांवों के तलवों की खाल को इतना मज़बूत बना दिया था कि अब उस पर कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। वैसे भी दो भैंसों को पालना इतना