वीर सावरकर - 1 - कथा प्रसंग

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यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।— श्रीमद्भगवद्गीता संसार में दो प्रकार के पुरुष होते हैं। एक तो वह जो संसार के पीछे चलते हैं और दूसरे वह जो संसार को अपने पीछे चलाते हैं। पहले प्रकार के सभी मनुष्य संसार के प्रवाह में बह जाते हैं और जिनके जन्म और मरण से उनके कुछ निकट सम्बन्धियों के अतिरिक्त और कोई परिचित नहीं होता। किन्तु दूसरे प्रकार के मनुष्य बिरले ही होते हैं, जो अद्भुत शक्ति के द्वारा संसार को अपने पीछे चलाते हैं। ये महापुरुष होते हैं। इनके जन्म और मरण का समस्त देश और जाति पर प्रभाव