विस्तार सपनों का

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अमन कुमार त्यागी कभी-कभी परिस्थितियाँ इतनी भयावह हो जाती हैं। आदमी सोचता कुछ है, करता कुछ है और हो कुछ जाता है। जीवन भर योजना बनाता है मगर अंतिम समय में किसी रेतीली दीवार सा भरभराकर गिर जाता है। आसमान सी बुलंदियों को छूने की चाह रखने वाला उस समय असमंजस की स्थिति में होता है, जब ज़मीन उसके पैरों से खिसक चुकी होती है। सबको साथ लेकर चलने वाला एकाएक अकेला रह जाता है। कुछ यही हाल हुआ श्रीधर का। श्रीधर के सपने जितने बड़े थे उससे अधिक उसमें काम करने की क्षमता थी। वह अकेले दम पर दुनिया