भाग 58 जीवन सूत्र 65 सृष्टि चक्र में मानव की महत्वपूर्ण भूमिकाभगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति।।3/16।।इसका अर्थ है,"हे पार्थ! जो मनुष्य इस लोक में परम्परा से जारी सृष्टि के चक्र के अनुसार आचरण नहीं करता,वह इन्द्रियों के द्वारा भोगों में लिप्त रहने वाला पापपूर्ण जीवन जीता मनुष्य संसार में व्यर्थ ही समय बिताता है।" पिछले 14 वें और 15 वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने सृष्टि के चक्र की चर्चा की।आज से हजारों वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने इस सृष्टि चक्र के माध्यम से पारिस्थितिकी और जलवायु चक्र का