बेसहारा

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अमन कुमार त्यागी जनवरी की कँपकँपा देने वाली सर्दी थी। मैंने स्वेटर और जैकेट पहने होने के बावजूद सर्दी से ठिठुरन का अहसास किया। चाय पीने का मन हुआ और एक मित्र के साथ छोटे से होटल में घुस गया। वहाँ पहले से ही काफ़ी लोग जमा थे। बैठने के लिए मेरी निगाहें सीट तलाश रही थीं। मैंने खाली स्थान देख मित्र का हाथ दबाया और स्वयं भी उस ख़ाली सीट पर बैठ गया। तभी मेरी निगाहें उस बच्चे पर टिक गईं जो बड़ी फुर्ती के साथ चाय टेबिल पर कपड़े से सफ़ाई कर रहा था। निश्चित ही उस बालक