लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-141 अगले दिन सुबह साढ़े पांच बजे अलार्म बजा और केतकी की नींद खुल गयी। उसने भावना को धीरे से हिलाया ‘उठो...जल्दी से ...आधे घंटे में तैयार हो जाओ...’ ‘अरे, ग्रूमिंग तो खत्म हो गयी न...सोने दो...’ केतकी ने भावना की चादर खींच ली, लाइट जलाए और पंखा चालू करके वह बोली, ‘योर टाइम स्टार्ट्स नाउ...’ भावना उठ बैठी, लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। पैंतीस मिनट में तैयार होकर आयी तो डायनिंग टेबल पर उसकी चाय का कप तैयार था और केतकी अपने सिर पर नोटबुक रखकर हाईहील्स पहनकर चल रही थी। वह सब कुछ