हनुमान प्रसाद पोद्दार जी (श्रीभाई जी) - 8

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अध्यात्म-भावना का पुनरुद्रेकभगवान्ने जिस कार्य के लिये भाईजी को भेजा था, उसकी ओर आकर्षण बम्बईके भोग–प्रधान व्यापारिक जीवनमें रहते हुए भी होने लगा। यह साधारण नियमका अपवाद कहा जा सकता है। प्रधान रूप से व्यापार करते हुए तथा राजनीतिक एवं सामाजिक कार्योंमें पूरा भाग लेते हुए किसीका जीवन साधनाके सोपानोंपर चढ़ने लगे, और वह भी बम्बई जैसे नगरोंमें रहते हुए तो उसे अवश्य ही भगवत् इच्छा ही कहना पड़ेगा। भाईजी के जीवनमें यही हुआ। बम्बई आने के दस महीने बाद ही छोटी बहिन अन्नपूर्णाके विवाहके लिये भाईजी को बाँकुड़ा जाना पड़ा। इस निमित्तसे श्रीसेठजी का सत्संग भी प्राप्त हुआ। दोनोंमें