गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 52

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भाग 51 जीवन सूत्र 59 और 60जीवन सूत्र 59:मन के दमन के बदले उसे मोड़े दूसरी दिशा मेंभगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।(3.6)।इसका अर्थ है:- जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त इंद्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोक कर मन से उन इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दंभी कहा जाता है। प्रायः यह होता है कि मनुष्य कर्मेन्द्रियों को रोककर उन इन्द्रियों के विषय-भोगों का मन से चिन्तन करता रहता है। वह वास्तव में ढोंगी है। असल में वह सदाचरण का दिखावा करता है। अब यहां