गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 49

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भाग 48 जीवन सूत्र 56: अक्षय आनंद का स्रोत भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है: -विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2/71।।एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।2/72।।इसका अर्थ है,जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओंका त्याग करके इच्छारहित,ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है,वह शांति को प्राप्त होता है।हे पार्थ! यह ब्राह्मी स्थिति है।इसको प्राप्त कर कभी कोई मोहित नहीं होता।इस स्थिति में अन्तकाल में भी ब्रह्मानंद की प्राप्ति हो जाती है। इन श्लोकों में भगवान श्रीकृष्ण ने चिर शांति की अवधारणा बताई है।उनके द्वारा अध्याय 2 के श्लोकों में मृत्यु और आत्मा की अमरता, समबुद्धि और स्थितप्रज्ञ मनुष्य