कुरुक्षेत्र

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रेलगाड़ी अपनी रफ़्तार से चलती जा रही थी देश के बिभन्न कोनो से बिभन्न जाती धर्मो भाषा के लोग एक साथ आपने अपने गंतव्य की तरफ चले जा रहे थे किसी के बीच कोई बैर भाव नही बल्कि सभी एक दूसरे को समायोजित यह कहते हुये करते कि सफर में थोड़ा बहुत कष्ट होता है मिलकर एक दूसरे में बांट लेते ।रेल गाड़ी को कत्तई ज्ञात नही की वह किस जाति किस धर्म किस भाषा के लांगो को उनकी मंज़िल कि तरफ ले जा रही है निरपेक्ष भाव से आगे बढ़ती जा रही थी जिसकी मंजिल आती जती वह उस