तीन बीघा जमीन सायं ढलने लगी थी, खेतीहर किसान अपने खेतों से लौटने लगे थे, चरवाहे भेड़ - बकरियों, गाय- भैंसों के झुंड लिए जंगल से वापसी कर रहे थे, कच्चे दगडों में उनके खुरों से बालू के कण हवा के साथ ऊपर उठ रहे थे, सूर्यास्त के बाद ऊपर से जैसे अंधेरा कण-कण बनकर नीचे की ओर सरक रहा था, आकाश धूमल सा हो चला था, आभास ही नहीं हो रहा था कि धूल के कणों की वजह से या रात्रि के अंधेरे की चादर धीरे-धीरे सरकने की वजह से । परिंदे अपने घौंसलों की ओर लौटने लगे थे