तुलसी तेरे आंगन की शादी के लाल सुर्ख जोड़े़े में लिपटी , कुछ गहनों से लदी, मेमना सी पलंग पर बैठी तुलसी सुहागरात के दिन आने वाले समय की कल्पना कर कभी सिहर जाती थी , कभी डर जाती थी , कभी सारे शरीर पर रोए खड़े हो जाते थे , उसे एहसास होता मानो तन पर एकदम से कुछ ज्यादा ही बाल उग आए हैं, कभी भयभीत हिरनी की तरह दरवाजे को आंख फाड़़कर देखती, कभी खिड़की की तरफ , मानो उसका कक्ष भयानक जंगल की तरह हो और खतरा किधर से भी आ सकता था, यह भांपने के