दादा-पोता

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अमन कुमार त्यागी  नेकीराम की जवानी की तरह दिन भी ढल चुका था। ठिठुरती सर्दियों की कृष्णपक्षीय रात सर्र-सर्र चलती हवा की वजह से और भी भयावह हो जाने वाली थी। दिन भर पाला गिरा था। यह तो अच्छा था कि सुबह थोड़ी देर के लिए सूर्यदेव ने दर्शन दिए तो वो शौचादि कार्यों से निवृत्त हो लिए थे। उनकी चारपाई बरांडे में पड़ी थी। जहां हवा का हर झौंका उनके बुढ़ापे को सलाम करके जाता था। बेटा-बहू और उनके बच्चे सभी अंदर कमरे में सोते। दरवाज़े की चिटकनी लगा लेते और खिड़कियों को भी बंद कर लेते। जब सांझ