कुलक्षणी

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कुलक्षणीनौबत ने आखरी जूता लोहे की रांपी पर चढ़ाया और तरकीब से फटे हुये हिस्से को सुई से सीने लगा। उसके अनुभवी हाथों से जूता निबट कर अपने मालिक की राह देख ही रहा था कि शाम का छुटपुटा घिरने लगा, चौराहे पर खड़ा सिपाही डंडा फटकारते हुये आ खड़ा हुआ और नौबत की बंद पेटी पर अपना काला मोटा जूता रख कर आगे को झुक गया नौबत ने जेब में हाथ डाल कर दो-पाँच के कई नोट निकाल कर गिने और पचास रूपये हफ्ते के उसके हाथ पर रख दिये। घर की रसोई से उसे दाल भात और बाजरे