नमो अरिहंता - भाग 21 - (अंतिम भाग)

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(21) अंत ** मानसून की पहली बारिश ने गर्मी के माथे पर पानी की पट्टी चढ़ा दी सो, लू-लपट तो कब की मर गई अब सड़ी गर्मी से भी निजात मिल उठी थी। सोनागिरि का समूचा वातावरण इसलिए सुखमय था कि वह विंध्याचल की पूँछ वाली पहाड़ियों पर बसा है। वहाँ न पानी भरा रह पाता है गड्ढों में और न कीचड़ की किचपिच मचती है। ताल-तलैयाँ भी नहीं हैं नजदीक सो मेंढकों की टर्राहट से भी वास्ता नहीं पड़ता साँझ घिरते ही। और भूमि पहाड़ी होने से बेवजह की खरपतवार से भी बची रहती है धरती।... ऐसे सुखमय माहौल