"आपा देवात, ये आपके लिए ही हुक्के की बजरका पुलिंदा खिंचा हे । मीठी ये बजर (तम्बाकू) हाथ आई तो सोचा की इस बजर का धुआँ तो आप देवात की घूंट में ही सजेगा ।" ये बोलते ही भरी दरबार में एक काठी आदमी आके बिच में बैठे एक पडछंद पुरुष को ये बजरका पुलिंदा धरता हे। उस आदमी की सोने की अंगूठी वाली उंगलिया उसकी दाढ़ी के बालो में खेल रही हे और होठ हलके से मुस्कुरा रहे हे। उतने में ही दूसरा काठी आदमी खड़ा होता हे, "आपा देवात, ये नया नकोर हुक्का गंगा-जमुना तार से सजाके ख़ास