अग्निजा - 124

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लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-124 दूसरे दिन सुबह केतकी जल्दी ही जाग गयी। सभी खर्राटे लेकर सो रही थीं उस समय वह समुद्र के किनारे जाकर बैठ गयी। कल के नारियल पानी वाले की बेंच आज खाली थी। किनारे पर गिने-चुने लोग ही थे। कोई घूम रहा था को व्यायाम कर रहा था। वह कुछ देर उस बेंच पर बैठ गयी, फिर उठकर चलने लगी। समुद्र की तरफ देखते हुए चलती रही। एक जगह सीमेंट का चबूतरा बना हुआ था। वहां पर कुछ धूप थी फिर भी केतकी को वहां जाने की इच्छा हुई। वह उस चबूतरे पर जाकर बैठ गयी।