झूट कहूँ तो

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मिल तो जाएंगे न!" चावला जी ने अपने खोये पिता जी के बारे में पूछते हुए बंगाली बाबा से पूछा।चावला जी के पिताजी जो कि करीब अस्सी वर्ष के बुजुर्ग थे। उम्र के साथ-साथ उनकी यरदाश्त कमज़ोर होती चली गयी थी। शरीर से बिल्कुल स्वथ्य। चेहरे पर बुढ़ापे की झूर्रियों के अलावा इस उम्र में आ बैठने वाले अन्य रोग शरीर को छुए भी नहीं थे। आज भी अपने सारे काम, यहां तक के घरवालों के अन्य काम भी बिना थके करते आ रहे थे। ऊपर से बुढ़ापे को संबल देती ठीक-ठाक मिलती पेंशन घर में उनकी स्थिति को जरूरी