इश्क़ ए बिस्मिल - 72

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अपने माज़ी (गुज़रा हुआ वक़्त)) के तसव्वुर (imagination) से हैराँ सी हूँ मैं अपने गुज़रे हुए ऐयाम (दिनों) से नफ़रत है मुझे अपनी बेकार तमन्नाओं पे शर्मिंदा हूँ अपनी बसूद (बेकार) उम्मीदों पे निदामत (पछतावा) है मुझे मेरे माज़ी को अंधेरे में दबा रहने दो मेरा माज़ी मेरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं मेरी उम्मीदों का हासिल, मेरी काविश (कोशिश) का सिला एक बेनाम अज़ीयत के सिवा कुछ भी नहीं कितनी बेकार उम्मीदों का सहारा लेकर मैंने ऐंवाॅ (महल) सजाए थे किसी की खातिर कितनी बेरब्त ( बिना जुड़ा हुआ) तमन्नाओं के मुबहम (जो साफ़ ना हो) ख़ाके (outlines)