अनसुनी यात्राओं की नायिकाएं - भाग 8 (अंतिम भाग)

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प्रदीप श्रीवास्तव भाग 8 (अंतिम भाग) उसने मेरे इस स्पष्टीकरण को सुनने लायक भी नहीं समझा कि, मैं तो आगे बढ़ा ही नहीं था, उसने ही मुझे खींच कर गिरा लिया था खुद पर. ऐसे में मैं क्या करता? मैं क्या, कोई भी मर्द उस स्थिति में खुद को संभाल ही नहीं सकता था. कोर्ट में खुर्राट से खुर्राट न्याय-मूर्तियों को भी अपनी बात सुना कर ही मानने वाला, मैं घर में पत्नी के कठोर ऑर्डर-ऑर्डर वाले हथौड़े की भारी-भरकम चोट से कुचल कर शांत हो गया. वह मुझे अपनी छाया के पास भी फटकने नहीं दे रही थी. घर