मंजिल की तलाश

  • 4.5k
  • 1.6k

निकल पड़ा हूं सुनसान सड़कों पर ,डर है कहीं खो ना जाऊं।जागती आंखो ने कुछ सपने देखे हैंडर है कहीं सो ना जाऊं।। इन सपनों को लिए निकल पड़ा हूं,अकेले ही इस राह पर।मिले जो कोई तो पुछूं उनसे,क्यों गर्व है अपनी चाह पर।। इस जिंदगी की राह पर ,बहुत से पड़े हैं पाथरे।पता नहीं मंजिले मिलेगी ,या मिलेगी केवल ठोकरें।। कर्म तो बहुत कर लिया,अब नसीब का सहारा है।नसीब मेरा खराब नहीं,ये वक़्त का मारा है।। चहुं दिशा में इस जिंदगी की,हर तरफ एक मोड़ है।हर घड़ी हर किसी को,बस जीतने की होड़ है।। माना कि थोड़ा थका हूं