एक दिन भक्त शिरोमणी देवर्षि नारद वीणा पर हरिका यशोगान करते हुए ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ कुछ ब्राह्मण अत्यंत खिन्न और उदास अवस्था में बैठे थे। उन्हें दुखी देखकर नारद जी ने पूछा पूज्य ब्राह्मण देवों! आप सब इस प्रकार उदास क्यों हो रहे हैं? कृपया मुझे अपने दुख का कारण बताइए, संभवतः मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूं। ब्राह्मणों ने उत्तर दिया मुनिवर! एक दिन सौराष्ट्र के राजा धर्मवर्मा ने आकाशवाणी सुनीद्विहेतु जाडधिष्ठानं जाडडूं च द्विपाकयुक्।चतुष्प्रकार त्रिवधं त्रिनाशं दानमुच्यते।। राजा को दान विषयक इस श्लोक का कुछ भी अर्थ समझ में नहीं आया। उन्होंने देवी वाणी से इसका