भाग 26: जीवन सूत्र :28 एक निश्चयात्मक बुद्धि का करें अभ्यास गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन। बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम्।।2/41।। इसका अर्थ है,हे कुरुनन्दन ! इस कर्मयोग में निश्चयात्मक बुद्धि एक ही है, अज्ञानी पुरुषों की बुद्धियां(संकल्प,दृष्टिकोण) बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं, क्योंकि वे अस्थिर विचार वाले और विवेकहीन होते हैं। वास्तव में मनुष्य का मन दिन भर में हजारों विचारों के आने - जाने का केंद्र होता है। कभी उसके मन में एक विचार आता है तो कभी दूसरा,और आगे ऐसे अनेक विचार आते रहते हैं।वह इन विचारों और तर्कों के खंडन -