(13) मुक्तिकामी ** प्रीति के जाने के बाद आनंद बिना उस दिशा में देखे, बिना उस घटना पर विचार किए, अपने मन में किसी स्मिृति को न बसाकर पहाड़ की ओर चल दिए। प्रवेश द्वार पर द्वार-रक्षक ने उन्हें चप्पल छोड़ जाने को कहा और तब एक कोने में चप्पलें उन्होंने इस निश्चय के साथ उतार दीं कि अब इन्हें कभी धारण नहीं करेंगे। प्रवेश करते ही उन्हें अपने बायीं ओर बीसपंथी कोठी का कोट नजर आया। दायीं ओर के मंदिर में नेमिनाथजी खड्गासन में मौजूद थे। औचक आनंद को कुछ ऐसी अनुभूति हुई कि वे स्वर्गधाम में प्रवेश कर