उजाले की ओर –संस्मरण

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मित्रों प्रणव भारती का स्नेहिल नमन हम भूल जाते हैं, इस संसार के वृत्त में घूमते हुए, हम इस कटु सत्य से अपने मन को न जाने कब भटका लेते हैं । बहुत देर बाद समझ आता है कि भई बहुत छोटा सा है जीवन ! और खो जाते हैं इस सागर की लहरों में ! सच बात तो यह है मित्रों कि हम अपनी ही बातों में, अपने कर्तव्यों में,अपनी परेशानियों में गुम हो जाते हैं | स्वाभाविक भी है क्योंकि हम अपनी प्रतिदिन की पीड़ाओं की गुत्थी में ऐसे उलझ जाते हैं कि जब तक हम पर कोई