कहते हुए गोपाल की आँखें जैसे कहीं शून्य में स्थिर हो गई हों ....मान और अपमान के बीच झूला झूलते और पल पल शर्मिंदगी के साथ मन में उठ रहे भावों से समझौता करके तिल तिल मरने का अहसास लिए अमेरिका में बिताया एक एक पल किसी फिल्म की रील की मानिंद उसकी आँखों के सामने नृत्य करने लगा और वह पूरा दृश्य जमनादास को यूँ सुनाने लगा जैसे संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आँखों देखा हाल ज्यों का त्यों सुना दिया था। अपनी बात शुरू करने से पहले गोपाल ने सभी नौकरों को वहाँ से हटा दिया