अग्निजा - 87

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लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-87 केतकी तो पहले दिन से ही समझ चुकी थी कि जीतू एकदम जड़बुद्धि और मट्ठ और अशिक्षित है। संवेदना तो उसमें है ही नहीं। उसे उसकी ओर से किसी भी सहानुभूति या अपनापन की उम्मीद नहीं थी। इस लिए जीतू के जीवन में उसका कितना और क्या स्थान होगा, इस पर विचार करने में समय खर्च करने का कोई मतलब ही नहीं रह गया था। केतकी को अपने भविष्य में मां का भूतकाल और वर्तमान की पुनरावृत्ति दिखायी देने लगी थी। और वह कांप उठी। नहीं, नहीं...मुझे दूसरी यशोदा नहीं बनना है। लेकिन कोई विकल्प भी