जिस समय देव दुर्लभ परम पवित्र भारत-भूमि में विदेशी शासको की धार्मिक कट्टरता अपनी पराकाष्टा पर थी, कुराज्य का बोल-बाला था, भारतीय संस्कृति का गौरवमय भविष्य अन्धकार के सिकंजो में तड़प रहा था, उस समय महाराष्ट्र में भागवत दूत के रूप में, ईश्वरीय सन्देश का प्रचार करने के लिये, धरती पर रामराज्य की भूमिका प्रस्तुत करने के लिये समर्थ रामदास का प्राकट्य हुआ। उन्होंने अपने स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज से तथा भारतीय जनता से कहा कि जब धर्म का अंत हो जाय तब जीने की अपेक्षा मर जाना अच्छा है। धर्म के समाप्त होने पर जीवित रहने का