निर्मलधारा

  • 2.1k
  • 717

निर्मलधारा कहानी / शरोवन वर्षों के बाद जब एक बार फिर से मुझे दंदियाबाड़ा कि भीषण गर्मी और कानों की कनपटियों को अपनी तमतमाती गर्म और पसीने से परेशान करती हुई लू से वास्ता करना पड़ा तो मन-मस्तिष्क के किसी कोने में चुपचाप बैठी हुई अतीत की स्मृतियों ने स्वत: ही कुरेदना आरंभ कर दिया. ध्यान आया तो आंखों के पर्दे पर बना-बनाया वह चित्र बीते हुए दिनों की कोई याद लेकर अपने आप ही फिर से उभरने लगा. वर्षों बाद मैं एक बार फिर से उसी स्थान पर आया था जहाँ पर कभी एक दिन किसी भोली-भाली ग्रामीण बाला