क्या लिखूं मैं इस के बारे में जो जिंदगी का हिस्सा बन चुका हैं सोचती हूं हर साल के खत्म होने पर कि ना सोचू इसके बारे में पर नए साल का सुनते ही फिर वह याद आने लगता है जाते-जाते कुछ लोगों की असलियत दिखा देता है और कुछ लोगों को हमारी नजरों में अच्छा बना जाता है समझने की जरूरत है उन लोगों को जो कहीं ना कहीं हमें गलत समझते हैं इसको कुछ इस तरह से लिख सकते हैं : चाहूं मैं भूलना तुझे पर भूल नहीं पाती हूं। ठीक वैसे ही शायद मैं बोलना भी नहीं