अग्निजा - 84

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प्रकरण-84 जीतू को केतकी के प्रति मन से रुचि नहीं थी। जो कुछ था, बस उसका स्वार्थ था। अब उसने केतकी पर संदेह करना प्रारंभ कर दिया और केतकी से दूरी भी बनाने लगा था। फिर भी कई बार केतकी की शाला के पास आकर उसके आने-जाने के समय और उसके साथ कौन रहता है-इस पर छुप कर नजर रखने लगा था। कभी दिमाग में संदेह का कीड़ा अधिक कुलबुलाये तो डॉ. मंगल के दवाखाने का चक्कर मार कर आ जाता था। लेकिन संयोग ऐसा बना कि एक बार भावना ही सुबह जाकर उनकी दवा ले आयी थी तो दूसरी