प्रकरण-82 केतकी का सिर ध्यानपूर्वक देखने पर भावना अंचभित रह गई। वह चुपचाप देखती ही रही। केतकी को डर लगा, “फिर से वही न...मेरा ही नसीब खोटा...और क्या?” उसने अपने सिर पर रखा हुआ भावना का हाथ दूर किया। भावना की ओर देखा, तो उसकी आंखों में पानी झलक रहा था। “अरी पगली, अब उसकी आदत कर लेनी चाहिए...बाल गए तो गए...” “केतकी बहन, बाल गए नहीं, आए..हां उस गोल चकत्ते का आकार भी छोटा हो गया है अब। उसके आजू-बाजू में छोटे-छोटे बाल दिखाई दे रहे हैं।” इतना कह कर उसने केतकी को गले से लगा लिया। शाम को