डेफोड़िल्स ! - 6 - अंतिम भाग

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66 - रुलाते क्यों ? क्यों रुलाते हो हँसते हुए चमन को चमेली सी हँसी में घोलते हो दुष्ट काले इरादे पकड़ते हो नहीं हो हाथ जो काँपते हैं विश्वास की भूमि पर रोपते हो कंटक क्या पाते हो जीव ब्रह्मांड का कण मन को कैसे बहलाते हो तुरुप के इक्के पर सारी दुनिया को हाँक ले जाते हो !!     67 - जिजीविषा हाँ,ज़िंदा हैं सारे चाँद –तारे ज़िंदा हैं मुहब्बत के कतरे इधर-से उधर बहकती चाँदनी गुमसुम से तुम क्यों ? हैं ज़िंदा तो प्रमाण दे ज़िंदगी का मुस्कुराते चेहरों के बीच खिलते कमल सा तुम्हारा मुखड़ा