मुरली संघर्ष की उस राह पर चल रहा था, जिस राह पर हर रोज़ उसके सामने यह चुनौती होती कि आज कितना सामान वह बेच पाया। इस राह पर मेहनत के साथ ही बहुत धैर्य की भी ज़रूरत थी क्योंकि यहाँ कभी-कभी अपमान का कड़वा घूंट भी पीना पड़ता था। कहीं हाँ तो कहीं ना थी। कोई दरवाज़ा खोल कर मुस्कुरा कर उसे मना कर देता। कोई उसे और उसके कंधे पर टंगे बैग को देखते ही मुँह बनाते हुए उसके मुँह पर बिना कुछ बोले ही दरवाज़ा बंद कर देता। पूरे दिन में दो चार जगह यदि उसे ख़ुशी