किंबहुना - 9

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9 उथल-पुथल समाप्त हो गई और अब एक शांत झील अपनी मंद लहरों के साथ हर पल मुस्कराने लगी। इसी बीच उसने कई एक सुंदर कविताएँ लिखीं और अपना खुद का एक साहित्यिक समूह बना लिया, जिसकी बलौदा बाजार के गायत्री मंदिर स्थित हाॅल में हर माह एक गोष्ठी होने लगी। साल भर के भीतर ही वह छत्तीसगढ़ी भी सीख गई थी, इसलिए गोष्ठी में सुनाने हिन्दी के अलावा छत्तीसगढ़ी में भी कविताएँ लिखने लगी। बीच-बीच में रायपुर की गोष्ठियों से भी आमंत्रण मिल जाता। यों कभी गढ़कलेवा में तो कभी वृंदावन गार्डन में पहुँचने का अवसर मिल जाता। भरत