जुड़ी रहूँ जड़ों से - भाग 8

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अपने बचपन और अपने मुल्क के ख्यालों में खिलखिलाती तबस्सुम खानसाहब की बात सुनकर जैसे सुन्न हो गई। खान साहब की उलझी उलझी बातों में वो ऐसे उलझ गई जैसे जैसे कोई उड़ता हुआ हुआ पंछी उलझ गया हो पतंग के धागों में। खान साहब की तीखी बातों से उसके घायल होने लगे थे उसके पंख पर तबस्सुम का ये हाल देखकर परिस्थिति को संभालते हुए खान साहब फिर बोले- " बेगम सच कहूँ तो जब भी आपको अपने वतन की याद में सिसकते देखता हूँ तो बहुत कोसता हूँ अपने आप को....!क्योंकि मैं दुनिया का हर सुख आपकी झोली