दास्तान-ए -दर्द

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डॉ. प्रणव भारती ----------------------------------------- दास्तान-ए-दर्द शीर्षक में छिपी चार उपन्यासिकाएँ अपने भीतर एक पूरा का पूरा समुद्र उठाए घूमती हैं | इस दर्द के सैलाब में विभिन्न विषय हैं जो वैसे तो अलग हैं किन्तु किसी न किसी प्रकार से एक-दूसरे से इतने जुड़े हुए हैं कि लगता है एक डोर से बंधे हुए हैं |आदमी के शरीर के सभी अंग उसके शरीर से जुड़े रहते हैं लेकिन उनका काम अलग अलग होता है | ऐसे ही मस्तिष्क की शिराओं में कौनसी संवेदना कब भीतर के भाव कुरेदने लगे,लेखक नहीं जानता | वह उसके लिए कोई 'प्री-प्लानिंग' नहीं करता है