जिन्होंने खजुराहो नही देखा-अद्भुत उपन्यासखजुराहो का लपका :सुनील चतुर्वेदीराज बोहरेसुनील चतुर्वेदी का चौथा उपन्यास 'खजुराहो का लपका' भाषाई रूप से समृद्ध, शैलीगत रूप से एकदम नवीन और किस्सागोई के नजरिए से बड़ा बेहतरीन' कसावट भरा एक अद्वितीय उपन्यास है । खजुराहो की यात्रा कर चुके सब जानते हैं कि खजुराहो के मंदिरों के आसपास घूमने वाले आंचलिक ग्रामीण युवक वहां आने वाले पर्यटकों के लिए गाइड के रूप में काम करते हैं, आंचलिक भाषा में इन्हें लपका कहा जाता है । लपका का शाब्दिक अर्थ है -टूरिस्ट या पर्यटक को लपक लेने वाला! ऐसे लपका (गाइड) शुरू-शुरू में अंग्रेजी नहीं