इश्क़ ए बिस्मिल - 40

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वह कल रात ही स्टोर रूम में शिफ़्ट हो गई थी। उस कमरे का एहसास ही उसे सुकून दे गया था। उस कमरे की हर एक शय में उसे उसके बाबा के होने का एहसास हो रहा था। उस कमरे के हर एक सू में जैसे एक पॉज़िटिव वाइब्ज़ थी जिसमें वह खुद को घिरा हुआ महसूस कर रही थी। सुबह फज्र की नमाज़ अदा कर के वह लॉन में निकल आई थी चहल क़दमी के इरादे से। चलते चलते वह वहीं पहुंच गई थी जहाँ वह कल उमैर के साथ मौजूद थी और वह काफी हैरान हुई थी जब