पुण्य करों और सुखी जीवन जियों या फिर पुण्य करना जीवन में कितना जरूरी हैं। ये फ़िल्म की मुख्य थीम हैं। पर डायरेक्टर एक बात भूल गया कि इस फ़िल्म को ना बनाना भी एक पुण्य का ही काम हैं। और इस काम को अगर वो करता तो भगवान की कृपा दर्शक और डायरेक्टर दोनों पर होती, लेकिन अफ़सोस निर्देशक के पाप में जनता भी भागीदार बन गयी। वैसे ये फ़िल्म क्यों बनाई ये बात मैंने फ़िल्म के शुरुआती दस मिनट में ही खुद से पूछ ली थी। लेकिन मैंने ये फ़िल्म फिर भी पूरी देखी ताकि आगे से इस