अग्निजा - 71

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प्रकरण-71 उस दिन न जाने क्यों, केतकी को अपने पिता जनार्दन की बहुत याद आ रही थी, जिन्हें उसने देखा भी नहीं था। उसने अपने पिता को तो देखा ही नहीं था, लेकिन आज तक उनका  फोटो भी नहीं देखा था। आई जो बातें बताती थीं, उनका वर्णन करती थी और अपनी कल्पनाशक्ति का उपयोग करके वह अपने सामने एक व्यक्तित्व खड़ा करती थी। वह व्यक्तित्व उसके लिए बहुत स्नेही, प्रिय और पूज्य था। मेरी जीतू के साथ शादी और उसके साथ सुखी गृहस्थी की कल्पना से ही उनको कितनी खुशी और संतोष मिला होता? पिता के ख्यालों में और