अग्निजा - 68

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प्रकरण-68 ठीक अठारहवें दिन जीतू केतकी की शाला के गेट के पास दिखाई दिया। आवाज में बड़ी विनम्रता लाते हुए बोला, “कैसी हो? एक काम था। शाम को मिलोगी?” केतकी ने हां कहा। तभी शाला की घंटी बज गयी। केतकी दुविधा में पड़ गयी, लेकिन जीतू ने ही कहा, “तुम जाओ। मैं शाम को यहीं मिलूंगा।” केतकी दिन भर विचार करती रही कि जीतू इतना नरम कैसे हो गया? ये तूफान के पहले की शांति तो नहीं? क्या काम होगा? सगाई तो नहीं तोड़नी? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। बीच में इतने दिनों तक जीतू ने मुझसे