रमणिका गुप्ता - श्रंखला -6 अंतिम कड़ी “परदेस से आती देशी स्त्री कलम की कसक” [ नीलम कुलश्रेष्ठ ] बाज़ारवाद के आक्रमण व लेखिकाओं की थकती कलम [ बकौल रमणिका जी स्त्री विमर्श की दस -बारह लेखिकाएं आइकन्स हैं ] व युवा पीढ़ी की अधिकतर कटु स्त्री विमर्श के लेखन से कतराने के कारण बीच में ऐसा लगने लगा था कि नारीवाद जल्दी ही डिब्बे में बंद हो जाएगा. अचानक १४ फ़रवरी सन २०१२ मे वेलेंटाइन डे के दिन समस्त विश्व में नारीवाद का एक विस्फोट हुआ- 65देशों [अगले वर्ष 200 ] की स्त्रियों ने पुरुष