उठो! तुम्हें जवाब देना है

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उठो लेखक!तुम्हें बांधने हैं-एक ‘साहेब’ के लाल टाई सेएक फौजी की बेवा के वो जूतेजो फट चूके हैं,कार्यालयों के चक्कर काटते-काटते।लेखक!इस चकाचौंध के बीच -कुछ लोग हैं,जो अपने सपनों के मर जाने से,लगभग मर ही गयें हैं।उठो! तुम्हें उन चलती फिरती लाशों मेंफिर से दम भरना है।उठो! तुम्हें लिखना है –उन बिन चप्पलों के घिसते पावों के लिए,जो ठान रखे हैं-पूरा करना ही है सफर।उठो! लिखो कुछ ऐसा –कि शब्द तेरे मरहम बन जाएंऔर भर दें, सफर की घावों को,खुशियों से, एक साथी की तरह।उठो लेखक!देखो उस अमीरजादे कोजो नाश्ते के नाम पर,फलों से भरी थाली ले,गद्देदार सोफे पर,सुबह –