मुँह चिढ़ाते सपने

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डा.प्रभात समीर भीखा को मैंने पहली बार अलका के घर में देखा था । उसके ड्राइंगरूम में बैठी किसी पत्रिका के पृष्ठ पलटती हुई मैं उसकी प्रतीक्षा कर रही थी । ड्राइंगरूम के दायीं ओर का दरवाज़ा अलका के पूजाघर की ओर खुलता है, जहाँ से सौंधी-सौंधी सुगंध सारे घर को महकाती रहती है ।वहाँ से आती तेज़ आवाज़ से मेरा ध्यान बंटा....गाने की आवाज़, कभी धीमा, कभी तेज़ एकतरफ़ा वार्तालाप और उसमें लगातार गूँजता ’ ‘गोबिंदा’नाम। मैंने सोफ़े से उचककर पूजाघर की ओर देखा तो एक पुरुष आकृति दिखाई दी। निश्चित ही वह अलका का नौकर होगा। अलका के